समाज में मैडिटेशन,ध्यान की अनेक विधिया प्रचलित है.आज- कल लोगों का ध्यान के प्रति काफी रूचि बढ़ रही है, अनेक लोग ध्यान से जुड़ रहे है और बहुत से लोग ध्यान से जुड़ना चाहते है. वास्तव में ध्यान कोई कठिन क्रिया नहीं है ध्यान तो हमारी स्वाभाविक अवस्था है परन्तु हम लगातार बाहरी दुनिया से जुड़े रहते है इसलिए हम अपने आत्मिक स्वरुप से अनभिज्ञ हो गए है. ध्यान तो हमारा सहज स्वरुप है, सरल स्वरुप है, शांत स्वरूप है,सुद्ध स्वरुप है,हम ही आज अशांत, असहज , कठिन और कप्म्पलीकेटेड हो गए है इसलिए हमें आज अपने वास्तविक स्वरुप में आने के लिए तरह- तरह के विधियों की आवस्यक्ता पड़ रही है. ध्यान तो सभी शारीरिक और मानसिक क्रियाओ को बंद करके स्वयं को देखना, स्वयं को अनुभव करना है. हम स्वयं को सरीर समझते है लेकिन यह सरीर एक आत्मिक शक्ति द्वारा ही सक्रिय है और उसी आत्मिक स्वरुप को अनुभव करने की प्रकृया ही ध्यान है. अपने आत्मिक स्वरुप में होना ही ध्यान की अवस्था है.
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