माना की जंदगी में बहोत दर्द है मगर,
खुशियां भी कम नहीं है, क्यों उदास हो जाऊ मैं.
तुम मिलोगे या नहीं, ये तो पता नहीं है मुझे,
उम्र बाकी है अभी , क्यों निरास हो जाऊ मैं.
उठा हु जब भी लड़खड़ाके, जमे है पांव और भी मेरे,
तूफ़ान देखकर, क्यों भला घबराऊं मैं.
तुम तपाते रहो , ख़ाक बनाने को मुझे,
क्यों न सोने की तरह और चमक जाऊ मैं.