उसे पाने की तमाम कोशिशे बेकार गयी, खुद को मिटाता गया और दूरिया मिटती गयी.
परमात्मा को पाने के उपाय ढूढ़ते है लेकिन राह बड़ी कठिन है,जो पहले से ही प्राप्त है उसे पाने का उपाय क्या ढूढना है, यह तो बड़ी नासमझी सी बात है, यह तो बेकार का समय बर्बाद करने जैसा है
.वास्तव में परमात्मा को पाने का कोई उपाय है ही नहीं क्योकि जो पहले से ही है उसे क्या ढूढना,जो कभी खोया ही नहीं था, जो कभी भी हमसे दूर ही नहीं हुआ, उसे पाने का भला क्या उपाय हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है की परमात्मा का दीदार नहीं हो सकता,अवस्य हो सकता है लेकिन उसे पाने का प्रयास नहीं करना है खुद को मिटाने की कोशिस करनी है. क्योकि मै ही बाधा हु.हमारा अहंकार रूपी पर्दा ही बाधा है, इसलिए सारी प्रक्रिया खुद को मिटाने की है.
मस्ती इतनी चढ़ जाए की खुद का अहसास ही न रहे, पूरा पूरा खाली हो जाएँ ,क्योकि हम पूरे भरे हुए है, कुछ रिक्त जगह है ही नहीं तो कुछ नया समाहित कैसे हो, इसलिए थोड़ी जगह बनानी होगी, अहंकार सम्पूर्णता में ब्याप्त है, उसे मिटाना होगा, सारे प्रयास , सारी साधना मै को मिटाने कि प्रक्रिया है, खुद को मिटाने की, खाली हो जाने की. जब तक घड़ा भरा है तब तक उसमे क्या भरोगे, भरोगे भी तो वह बाहर ही गिर जाएगा, इसलिये पूरी तरह से खाली होना पडेगा तभी कुछ नया भरेगा, लेकिन जो वर्षों से जमा हुआ है, कब्जा करके बैठा है वह इतनी आसानी तो जाएगा नहीं, वर्षों से नहीं सदियों से कब्जा करके रखा है,सदियों से ही नहीं जन्मो- जन्मो से.
लेकिन दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है. जब तक खाली नहीं होंगे तब तक वह समाएगा कहाँ.वह है लेकिन सूछ्म रूप में है, उसका विस्तार तभी होगा जब आप खाली हो जाओगे, तभी व्विस्तार के लिए जगह मिलेगा. यह समझना ही पडेगा, मन को समझाना ही पडेगा, कि जो भरा है वह बहुमूल्य नहीं है, वह भंगार है, वह कचरा है, वही बाधा है, वही दीवार है, उसे मिट जाने दो, उसे नस्ट हो जाने दो, उसकी माया मत करो, उससे हमदर्दी मत रखो, उसे सम्हालो मत,उसका तिरस्कार करो,वह हमारा मित्र नहीं है सत्रु है, जो परमात्मा के अनुभूति में बाधा है, इस दीवार को गिर जाने दो, इस कचरे को ख़ाक हो जाने दो, सारे ज्ञान को भूल जाना है, ज्ञान के मार्ग को ही छोड़ देना है, सिर्फ अनुभव करना है, सारी तलास को विराम देना है, स्थिर हो जाना है, शांत हो जाना है, पूरी तरह से खाली हो जाना है,बस स्वयं की अनुभति करना है, स्वयं को ही देखना है, स्वयं को ही पहचानना है,स्वयं में लीन हो जाना है, स्वयं में खो जाना है,स्वयं की तलास करते- करते शून्यता में प्रवेश कर जाना है, पूरी तरह रिक्त हो जाना है, उस अनंत में विलीन हो जाना है. यही एक मात्र मार्ग है खुद को मिटाने का, खाली हो जाने का, आत्म अनुभूति का,यही मार्ग ध्यान मार्ग है. परमात्मा के अनुभूति के लिए ध्यान मार्ग ही एक मात्र मार्ग है. प्रति दिन ध्यान करना है, प्रति दिन थोड़ा-थोड़ा खाली होना है, प्रति दिन इस प्रक्रिया को अनुभव करना है, और जो कभी भी हमसे दूर नहीं हुआ, हमेशा ही हमारे साथ है उस परमात्मा की अनुभूति
ही हमारे जीवन का उद्देस्य है.